गणेश उत्सव : क्यों दिया था मां तुलसी ने भगवान गणेश को श्राप
गणेश जी को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विघ्नहर्ता श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन ही हुआ था, इसलिए इस दिन गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी पर लोग गणेश जी को अपने घर लाते हैं, गणेश चतुर्थी के ग्यारहवें दिन धूमधाम के साथ उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है और अगले साल जल्दी आने की प्रार्थना की जाती है।
गणेश जी भगवान शिव और मां पार्वती की संतान हैं। गणेश जी की पूरी आकृति में सबसे महत्वपूर्ण उनकी सूंड मानी जाती है। इसके अलावा गणेश जी के दो बड़े कान हैं और किसी आम व्यक्ति की तरह उनका बड़ा सा पेट है। गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहते हैं।
हिंदू धर्म में 5 सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले भगवानों में एक गणेश जी भी हैं। पढ़ाई, ज्ञान, धन लाभ और अच्छी सेहत के लिए भी गणेश जी की पूजा की जाती है। शिव महापुराण के मुताबिक, गणेश जी का शरीर लाल और हरे रंग का होता है।
ब्रह्मावैवर्त पुराण के मुताबिक, मां पार्वती ने संतान पाने के लिए पुण्यक व्रत रखा था। माना जाता है कि इस व्रत की महिमा से ही मां पार्वती को गणेश जी संतान के रूप में मिले थे।
ब्रह्मावैवर्त पुराण के मुताबिक, जब सभी भगवान गणेश जी को आशीर्वाद दे रहे थे, उस समय शनि देव सिर को झुकाए खड़े थे। ये देखने पर मां पार्वती ने उनसे उनका सिर झुका कर खड़े होने का कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि अगर वे गणेश जी को देखेंगे तो हो सकता है कि उनका सिर शरीर से अलग हो जाएगा। लेकिन पार्वती जी के कहने पर शनि देव ने गणेश जी की ओर नजर उठाकर देख लिया, जिसके परिणामस्वरूप गणेश जी का सिर उनके शरीर से अलग हो गया।
ब्रह्मावैवर्त पुराण में ये भी बताया गया है कि शनि देव के देखने पर जब गणेश जी का सिर उनके शरीर से अलग हुआ तो उस समय भगवान श्रीहरि ने अपना गरुड़ उत्तर दिशा की ओर फेंका, जो पुष्य भद्रा नदी की तरफ जा पहुंचा था। वहां पर एक हथिनी अपने एक नवजात बच्चे के साथ सो रही थी। भगवान श्रीहरि ने अपने गरुड़ की मदद से हथिनी के बच्चे सिर काटकर गणेश जी के शरीर पर लगा दिया था, जिसके बाद एक बार फिर गणेश जी को जीवन मिला।
ब्रह्मावैवर्त पुराण के मुताबिक, भगवान शिव ने एक बार गुस्से में सूर्य देव पर त्रिशूल से वार किया था। भगवान शिव की इस बात से सूर्य देव के पिता बेहद क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान शिव को श्राप दिया कि जिस तरह भगवान शिव ने उनके पुत्र के शरीर को नुकसान पहुंचाया है ठीक उसी प्रकार एक दिन भगवान शिव के पुत्र यानी गणेश जी का शरीर भी कटेगा।
एक ये भी पौराणिक कथा है कि एक दिन तुलसी देवी गंगा घाट के किनारे से गुजर रही थीं। उस समय गणेश जी वहां पर ध्यान कर रहे थे। गणेश जी को देखते ही तुलसी देवी उनकी ओर आकर्षित हो गईं और गणेश जी को विवाह का प्रस्ताव दे दिया। लेकिन गणेश जी ने इस प्रस्ताव से मना कर दिया था। गणेश जी से न सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसीदेवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।
इस पर गणेश जी ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये शाप सुनते ही तुलसी गणेश भगवान से माफी मांगने लगीं। तब गणपति ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। गणेश भगवान ने कहा कि तुलसी कलयुग में जीवन और मोक्ष देने वाली होगी लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा। इसलिए गणेश भगवान को तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता है।
शिव महापुराण के अनुसार, गणेश जी की दो पत्नियां थीं। रिद्धि और सिद्धि और उनके दो पुत्र शुभ और लाभ हैं। ब्रह्मावैवर्त पुराण के मुताबिक, एक दिन परशुराम भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश मंदिर गए थे। उस समय भगवान शिव ध्यान कर रहे थे, जिस कारण गणेश जी ने परशुराम को अपने पिता यानी भगवान शिव से मिलने से रोक दिया। इस बात से परशुराम बेहद क्रोधित हो गए और उन्होंने गणेश जी पर हमला कर दिया।
हमले के लिए परशुराम ने जो हथियार इस्तेमाल किया था वे उन्हें खुद भगवान शिव ने ही दिया था। गणेश जी नहीं चाहते थे कि परशुराम द्वारा उन पर किया गया हमला बेकार जाए क्योंकि हमला करने के लिए हथियार खुद उनके पिता ने ही परशुराम को दिया था। उस हमले के दौरान उनका एक दांत टूट गया था, तभी से उन्हें ‘एकदंत’ के नाम से पहचाने जाने लगा। गणेश पुराण के मुताबिक, व्यक्ति के शरीर का मूलाधार चक्र गणेश भी कहा जाता है।