युवा-सी ताजगी के साथ दिलों पर राज करने वाले गुलजार
गुलजार के 88वें जन्मदिन- 18 अगस्त, 2024
गुलजार भारतीय गीतकार, कवि, पटकथा लेखक, फिल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा से कागजों पर लफ्जों को एक नई शक्ल, एक नई जिन्दगी, एक नई संवेदना एवं एक नई जिजीविषा को रचते हुए न केवल भारत बल्कि दुनिया के लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त की है। वे हिन्दी गीतों एवं संवादों के ऐसे राजकुमार हैं, जिन्होंने 88 साल के होकर भी युवा-सी ताजगी के साथ श्रोताओं दिलों पर राज किया है। उन्होंने बोलचाल की भाषा में शायरी करते हुए, गीत एवं संवाद लिखते हुए अपने सृजन से यौवन की दहलीज वालों के लिये प्रेम को जीवंतता दी है तो जवानी पार कर चुके बुजुर्गों के लिये जीने का नया अंदाज देकर प्रभावित किया है। उनके गीतों में श्रृंगार रस, लेखनी में संवेदनाएं एवं आत्मा में अध्यात्म-रस बसा हुआ है। वे ऐसे गीतकार, संवाद लेखक एवं शायर हैं, जिनके जीवन की चादर पर सकारात्मकता, संवेदना एवं प्रेम के रंग बिखरे हुए है। गुलजार दार्शनिक कवि-गीतकार हैं तो सनातन सत्य एवं जीवनमूल्यों को सहजता से उद्घाटित करने वाले जादूगर भी है।
सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार का जन्म 18 अगस्त 1936 में दीना, झेलम जिला, पंजाब में हुआ था, जोकि अब पाकिस्तान में है। गुलजार अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान हैं। उनके पिता का नाम माखन सिंह कालरा और माँ का नाम सुजान कौर था। जब गुलजार बेहद मासूम और छोटे थे तभी उनकी माँ का निधन हो गया। देश के विभाजन के वक्त इनका परिवार पंजाब के अमृतसर में आकर बस गया। वहीं से गुलजार मुंबई चले आए। मुंबई आकर उन्होंने एक गैरेज में बतौर मैकेनिक का काम करना शुरू कर दिया एवं खाली समय में शौकिया तौर पर कवितायें लिखने लगे। इसके बाद उन्होंने गैरेज का काम छोड़ हिंदी सिनेमा के मशहूर निर्देशक बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के सहायक के रूप में काम करने लगे। गुलजार की शादी तलाकशुदा अभिनेत्री राखी गुलजार से हुई हैं। हालांकि बेटी के जन्म के बाद गुलजार एवं राखी अलग हो गये। लेकिन गुलजार और राखी ने कभी भी एक-दूसरे से तलाक नहीं लिया। उनकी एक बेटी हैं-मेघना गुलजार जोकि एक फिल्म निर्देशक हैं।
अपनी सोच एवं कलम की जादूगरी से गुलजार सिनेमा की दुनिया और सिनेमा प्रेमियों के जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन गये हैं। गुनगुनाते गीतों एवं संवादों में जीवन एवं संवेदनशील किरदारों में अपना अक्स देखनेवाले दर्शक न गुलजार की फिल्मों को भूल सकते हैं और न ही गीतों को। वे प्रेम भरे गाने लिखते हैं तो भक्तिमय भी। ‘मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे श्याम रंग दे दई… सिनेमा की चमक-दमक में वे श्याम रंग की चाहत को भी उकेर देते हैं। स्क्रीन प्ले लिखते हैं तो आनंद जैसी फिल्म जिसका नायक हंसते-हंसते पल-पल करीब आती मौत के लिए तैयार नजर आता है। फिल्म बनाते हैं तो वो ‘आंधी’ और ‘मौसम’ की शक्ल में सामने आते हैं, जहां संवेदनाओं का ज्वार अपने चरम पर नजर आता है। टीवी सीरियल की बात होती है तो मिर्जा गालिब को जीवंत कर देते है। मिर्जा गालिब टीवी धारावाहिक की हैसियत कुछ वैसी है जैसे बड़े पर्दे पर मुगले-आजम की बनी थी। बच्चों के लिए लिखा तो जंगल जंगल बात चली है, पता चला है, चड्डी पहनकर फूल खिला है, बच्चों की जिन्दगी का अहम हिस्सा बन गया।
गुलजार बंटवारे के दौर की हिंसा को सालों तक नहीं भूल पाए। तब वे ग्यारह-बारह साल के थे। अपनी आंखों के सामने उन्होंने सैकड़ों लोगों का कत्ल होते देखा था। लाखों लोगों को रातोंरात उजड़नेे की भयावहता भी उनके दिलोदिमाग में घर कर गयी थी। कच्ची उम्र के जख्म जिंदगी भर नहीं जाते। गुलजार के अंदर भी यह पूरा हादसा किसी खतरनाक मंजर की तरह उबलता रहता है, सालता रहता है।
तभी तो गुलजार लिखते हैं- आंखों को वीजा नहीं लगता, सपनों की सरहद होती नहीं, बंद आंखों से रोज मैं सरहद पार चला जाता हूं। माचिस फिल्म बनाते हैं तो उनका दर्द कुछ यूं छलक आता है- छोड़ आए हम वो गलियां, छोड़ आए हम वो गलियां।। लेकिन गुलजार इसी दर्द से सिमटे भर नहीं रहे। वे कहते हैं, वक्त के साथ समझ में आया कि कम कहने में ज्यादा अर्थवत्ता है। ज्यादा कहने से अर्थ ही निस्तेज हो जाते हैं। इसलिए यही गुलजार जब मस्ती के मूड में आते हैं तो बखूबी लिख डालते हैं- गोली मार भेजे में, भेजा साला शोर करता है। यही गुलजार जब प्रेम कविता लिखते हैं- तुम्हारे गम की डली उठा कर, जुबां पर रख ली है देखो मैंने। वह कतरा कतरा पिघल रही है, मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूं।
खूबसूरती एवं जीवन के रंगों को हम प्रतीकों में पहचानते आए हैं और प्रतीक देश-काल, समाज-संस्कृति, जीवन एवं सोच, राजनीतिक माहौल के साथ बदलते रहते हैं। लेकिन गुलजार जैसे प्रेम और सौन्दर्य के महान् गीतकार अपनी काबिलीयत से जब नये रंग भरने लगता है तो जनमानस में व्याप्त खूबसूरती के पैमाने खुद-ब-खुद बदलने लगते हैं। गुलजार के पूरे जीवन में ये साफ नजर आता है कि समय के साथ वे खुद को बदलते रहे। उनका फोकस कभी डगमगाता नहीं दिखा, वह भी तब जब उनके अपने जीवन में ’आंधी’ आ गई थी। दरअसल, आज से यही कोई 50 साल पहले 18 अप्रैल, 1973 को गुलजार और राखी ने आपस में प्रेम विवाह किया था। इस शादी में उस वक्त की भारतीय सिनेमाई दुनिया के तमाम दिग्गज शरीक हुए थे। गुलजार के जीवन के पन्नों पर टंके हैं जीवन के, जिजीविषा के, सृजन के, संघर्ष के मंजर। जो हर कोण से एवं हर मोड़ से कुछ नया एवं विलक्षण करता रहा है। उनका हिंदी सिनेमा में करियर बतौर गीत लेखक एस. डी. बर्मन की फिल्म बंधिनी से शुरू हुआ। साल 1968 में उन्होंने फिल्म आशीर्वाद का संवाद लेखन किया। इस फिल्म में अशोक कुमार नजर आये थे। इस फिल्म के लिए अशोक कुमार को फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर का अवार्ड भी मिला था। इसके बाद उन्होंने कई बेहतरीन फिल्मों के गाने लिखे जिसके लिए उन्हें हमेशा आलोचकों और दर्शकों की तारीफें मिली। साल 2007 में उन्होंने हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर का गाना जय हो लिखा। उन्हें इस फिल्म के ग्रैमी अवार्ड एवं सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें 2004 में भारत के सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण से भी नवाजा जा चूका है। गुलजार अनेक पुरस्कार और सम्मान से नवाजे जा चूके हैं। जिनमें प्रमुख हैं- 5 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 22 फिल्मफेयर अवार्ड्स, 1999 से 2000 तक के लिए मध्य प्रदेश सरकार से राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान प्राप्त, साल 2008 में सर्वश्रेष्ठ मूल गीतों के लिए अकादमी पुरस्कार, 2010 में एक ग्रैमी अवार्ड, 2002 में उर्दू के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2013 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार आदि।
बतौर निर्देशक भी हिंदी सिनेमा में अपना बहुत योगदान दिया हैं। जिनमें उनकी प्रमुख फिल्में हैं-मेरे अपने, परिचय, कोशिश, अचानक, खुशबू, आँधी, मौसम, किनारा, किताब, अंगूर, नमकीन, मीरा, इजाजत, लेकिन, लिबास, माचिस, हु तू तू। उन्होंने अपने निर्देशन में कई बेहतरीन फिल्में दर्शकों को दी हैं। जो लीक से हटकर होने के कारण दर्शकों के द्वारा सराही गयी है और उनके दिलों में बस गयी है। जिन्हे दर्शक आज भी देखना पसंद करते हैं। उन्होंने बड़े पर्दे के अलावा छोटे पर्दे के लिए भी काफी कुछ लिखा है। जिनमे दूरदर्शन का शो ‘जंगल बुक’ भी शामिल है। ख्याति के ऊंच शिखरों पर आरूढ़ गुलजार का जीवन प्रेरक, सहज एवं सादगीमय है। मुंबई में रहने के बाद भी गुलजार तड़के पाँच बजे उठ जाते हैं। कहते हैं सूर्य उन्हें जगाए उससे पहले वे सूर्य को जगाना चाहते हैं। टीवी पर टेनिस और क्रिकेट का मैच आ रहा हो तो गुलजार कोई दूसरा काम नहीं करते। इन खासियतों के अलावा सार्वजनिक जीवन में गुलजार के व्यक्तित्व के दो अहम पहलू और भी हैं। शांत और सौम्य नजर आने वाले गुलजार हमेशा सफेद कपड़ों में ही दिखाई देते हैं, जिसने उन्हें एक स्वतंत्र पहचान दे दी है। गुलजार हम सबके चहेते हैं तो अपने गीतों के लिए, अपनी फिल्मों के लिए। अपनी शायरी और कविताओं के लिए। अपनी कहानियों के लिए। अपनी जिंदादिली के लिए।
ललित गर्ग
लेखक,पत्रकार, स्तंभकार