भाई-बहिन के रिश्तों में नवीन ऊर्जा का पर्व है रक्षाबंधन

भाई और बहन के रिश्ते को फौलाद-सी मजबूती देने वाला एवं सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता एवं एकसूत्रता का सांस्कृतिक एवं मानवीय मूल्यों का अनूठा पर्व है रक्षाबंधन। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मजबूत करते हैं और सुख-दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं। सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बँधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। यही कारण है कि यह मानवीय सम्बन्धों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीयता को सुदृढ़ करने के संकल्पों का भी पर्व है। भाई-बहन का प्रेम बड़ा अनूठा और अद्वितीय माना गया है। बहनों में उमंग और उत्साह को संचरित करता है, वे अपने प्यारे भाइयों के हाथ में राखी बांधने को आतुर होती हैं। बेहद शालीन और सात्विक स्नेह संबंधों का यह पर्व सदियों पुराना है।

यूं तो भाई-बहन के पवित्र संबंध के महत्व को हमारे देश में कई पर्व-त्योहारों में प्रतिबिंबित किया गया है। उनमें रक्षाबंधन सर्वोपरि है, धार्मिक एवं अलौकिक महत्व का यह त्योहार बहन भाई के स्नेह, अपनत्व एवं प्यार के धागों से जुड़ा है, जो घर-घर में भाई-बहिन के रिश्तों में नवीन ऊर्जा एवं आपसी प्रगाढ़ता का संचार करता है। रक्षाबंधन का गौरव अंतहीन पवित्र प्रेम की कहानी से जुड़ा है। उड़ीसा में पुरी का सुप्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित है। भाई-बहन के रिश्ते को भारत के हर धर्म एवं परम्परा में पवित्रता की नजर से देखा गया है। लेकिन विश्व की दूसरी संस्कृतियों में स्त्री-पुरुष के आपसी संबंधों में भाई-बहन वाले रिश्ते को इतनी पवित्रता, उत्सवमयता एवं गरिमापूर्ण ढं़ग से निभाने के और उदाहरण कम ही मिलते हैं।

राखी से जुड़ी एक सुंदर घटना का उल्लेख महाभारत में मिलता है। सुंदर इसलिए क्योंकि यह घटना दर्शाती है कि भाई-बहन के स्नेह के लिए उनका सगा होना जरूरी नहीं है। कथा है कि जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। लौटते हुए सुदर्शन चक्र से भगवान की छोटी उंगली थोड़ी कट गई और रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी आगे आईं और उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। इसी समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह एक-एक धागे का ऋण चुकाएंगे। इसके बाद जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी के चीर की लाज रखी। राखी के बारे में भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इंद्र घबराकर बृहस्पति के पास गए। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह दिन भी श्रावण पूर्णिमा का दिन था।

रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं में खलबली मच गयी और वे सभी भगवान विष्णु से प्रार्थना करने पहुंचे। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह पर्व बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है।

रक्षाबंधन का महत्व एवं मनाने की बात महाभारत में भी उल्लेखित है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा श्रीकृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार सिकंदर जब विश्वविजय के लिए निकला तो उसकी पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु महाराज पुरू को राखी बांधकर मुंहबोला भाई बना लिया था और उससे सिकंदर को न मारने का वचन ले लिया था। पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का मान रखा और सिकंदर को जीवनदान दे दिया।

राखी की सबसे प्रचलित और प्रसिद्ध कथा के अनुसार मेवाड़ की विधवा महारानी कर्मावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली तो वह घबरा गयी। रानी कर्मावती बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में असमर्थ थी। तब उसने मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की। राखी के बारे में प्रचलित ये कथाएं सोचने पर विवश कर देती हैं कि कितने महान उसूलों और मानवीय संवेदनाओं वाले थे वे लोग, जिनकी देखादेखी एक संपूर्ण परंपरा ने जन्म ले लिया और आज तक बदस्तूर जारी है। आज परंपरा भले ही चली आ रही है लेकिन उसमें भावना और प्यार की वह गहराई नहीं दिखायी देती। अब उसमें प्रदर्शन का घुन लग गया है। पर्व को सादगी से मनाने की बजाय बहनें अपनी सज-धज की चिंता और भाई से राखी के बहाने कुछ मिलने के लालच में ज्यादा लगी रहती हैं। भाई भी उसकी रक्षा और संकट हरने की प्रतिज्ञा लेने की बजाय जेब हल्की कर इतिश्री समझ लेता है। अब राखी में भाई-बहन के प्यार का वह ज्वार नहीं दिखायी देता जो शायद कभी रहा होगा।

एक बार देवी लक्ष्मी ने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए, मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीने चार्तुमास के रूप में जाने जाते हैं जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक होते हैं।

राखी त्योहार से जुड़ी कथाएं बताती हैं कि पहले खतरों के बीच फंसी बहन का साया जब भी भाई को पुकारता था, तो दुनिया की हर ताकत से लड़कर भी भाई उसे सुरक्षा देने दौड़ पड़ता था और उसकी राखी का मान रखता था। आज भातृत्व की सीमाओें को बहन फिर चुनौती दे रही है, क्यांेकि उसके उम्र का हर पड़ाव असुरक्षित है, उसकी इज्जत एवं अस्मिता को बार-बार नौचा जा रहा है। बौद्धिक प्रतिभा होते हुए भी उसे ऊंची शिक्षा से वंचित रखा जाता है, क्योंकि आखिर उसे घर ही तो संभालना है। नयी सभ्यता और नयी संस्कृति से अनजान रखा जाता है, ताकि वह भारतीय आदर्शों व सिद्धांतों से बगावत न कर बैठे। इन हालातों में उसकी योग्यता, अधिकार, चिंतन और जीवन का हर सपना कसमसाते रहते हैंं। इसलिए राखी के इस परम पावन पर्व पर भाइयों को ईमानदारी से पुनः अपनी बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण नारी जगत की सुरक्षा और सम्मान करने की कसम लेने की अपेक्षा है।

ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार

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